कविता:- दो पल
दो पल की जिंदगी है यारों
इसे खूब सवारों इसे खूब सवारों
बचपन से शुरू कर मौज मानो
गिरो पढ़ो लिखो स्वयं को खूब निखारो
दो पल की ही जिंदगी है यारों
इसे खूब सवारों इसे खूब संवारों
बचपन चला जवानी आई
मोह माया की सेज सजाई
मोहब्बत की धोखा खाया
फिर जिंदगी में कुछ करने का विचार आया
दो पल की है जिंदगी है यारों
इसे खूब सवारों इसे खूब संवारों
जवानी गई अधेड़ उम्र आई
जिम्मेदारी में ऐसे फंसे
जिंदगी हर पल नई सीख लाई
इसलिए....कहता हूं यारों
दो पल की जिंदगी है यारों
इसे खूब सवारों इसे खूब सवारों
फिर आई मेरी अंतिम शाखा की कड़ी
हाथों में थी राम नाम की हथकड़ी
जपो भजो सब गाया
अंतिम क्षण मेरा भी आया
फिर ..कहता हूं यारों कुछ नहीं..
दो पल की जिंदगी है यारों
इसे खूब सवारों इसे खूब सवारों
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#WoTil