Unsplash चलो कोई मंज़िल तलाशते हैं, किसी के सपनों | हिंदी कविता

"Unsplash चलो कोई मंज़िल तलाशते हैं, किसी के सपनों को सजाते हैं। खो गई हैं जो चेहरे की मुस्कान, चलो उसे वापस लाते हैं। गिर रहे हैं आंधियों से आशियाँ, चलो नया इक घर बनाते हैं। भटक गए हैं जो अपने रास्तों से, चलो उन्हें राह दिखाते हैं। चलो इंसान को इंसान बनाते हैं, जो फासले बने हैं, उन्हें मिटाते हैं। जो मासूमियत दब रही है धूल में, चलो उसे आईना दिखाते हैं। दम तोड़ रहे हैं जो बेबस लम्हों में, चलो उन्हें जीने का जज़्बा सिखाते हैं। जो टूट गए हैं डर के साए में, चलो उन्हें उम्मीद से मिलाते हैं। ©theABHAYSINGH_BIPIN"

 Unsplash चलो कोई मंज़िल तलाशते हैं,
किसी के सपनों को सजाते हैं।
खो गई हैं जो चेहरे की मुस्कान,
चलो उसे वापस लाते हैं।

गिर रहे हैं आंधियों से आशियाँ,
चलो नया इक घर बनाते हैं।
भटक गए हैं जो अपने रास्तों से,
चलो उन्हें राह दिखाते हैं।

चलो इंसान को इंसान बनाते हैं,
जो फासले बने हैं, उन्हें मिटाते हैं।
जो मासूमियत दब रही है धूल में,
चलो उसे आईना दिखाते हैं।

दम तोड़ रहे हैं जो बेबस लम्हों में,
चलो उन्हें जीने का जज़्बा सिखाते हैं।
जो टूट गए हैं डर के साए में,
चलो उन्हें उम्मीद से मिलाते हैं।

©theABHAYSINGH_BIPIN

Unsplash चलो कोई मंज़िल तलाशते हैं, किसी के सपनों को सजाते हैं। खो गई हैं जो चेहरे की मुस्कान, चलो उसे वापस लाते हैं। गिर रहे हैं आंधियों से आशियाँ, चलो नया इक घर बनाते हैं। भटक गए हैं जो अपने रास्तों से, चलो उन्हें राह दिखाते हैं। चलो इंसान को इंसान बनाते हैं, जो फासले बने हैं, उन्हें मिटाते हैं। जो मासूमियत दब रही है धूल में, चलो उसे आईना दिखाते हैं। दम तोड़ रहे हैं जो बेबस लम्हों में, चलो उन्हें जीने का जज़्बा सिखाते हैं। जो टूट गए हैं डर के साए में, चलो उन्हें उम्मीद से मिलाते हैं। ©theABHAYSINGH_BIPIN

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चलो कोई मंज़िल तलाशते हैं,
किसी के सपनों को सजाते हैं।
खो गई हैं जो चेहरे की मुस्कान,
चलो उसे वापस लाते हैं।

गिर रहे हैं आंधियों से आशियाँ,
चलो नया इक घर बनाते हैं।

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