यूँ बन संवर के जा रही हो,
जमाने भर पर बिजलियां गिरा रही हो।
आओ उतार दूं नजर तुम्हारी
कि किसी की नजर ना लगे ।।
खुद को जो यूं आईने में निहार रही हो ,
कहीं खुद की ही नजर ना लगे।
लो झुका लीं नजरे हमने अपनी,
कि कहीं तुमको हमारी ही नजर ना लगे।
बंद पलकों में ही देखते हैं तुमको,
कि कहीं मेरी ही नजर ना लगे।
आओ दिल में अपने कर दूं महफूज तुमको,
कि ज़माने की काली नजर ना लगे ।
यूं तो उतार सकते थे 'धीर' रंगीन तस्वीर भी तुम्हारी,
लेकिन पिरोया है तुमको शब्दों में भी काली स्याही से,
कि कहीं किसी की नजर ना लगे।।
©Dheer
#Wochaand