न खून का रिश्ता है न समाज के बंधन
न सात फेरों की कसमें न कागज़ न पत्र
हर सुख में साथ तो दुख में भी है खड़े
ये ना जाने है कौन से बंधन से बंधे।।
कभी बड़ा भाई तो कभी साथ के लगते
जब जैसे हो जरूरत वैसे है लगते
कभी ज़िन्दगी समझाते है तो कभी देते है गाली
कभी ढूध का प्याला तो कभी छलकाते है जाम