अगर परछाई बोल पाती
तो वो दिखाती...
प्रतिबिम भीतर हो रही "उथल-पुथल" का
अगर परछाई बोल पाती
तो वो कहती "शोर" मन का...
अगर परछाई बोल पाती
तो खोलती सारे "राज़" जो...
इस रोशनी से ढके रहते चमक बन
जो प्रतिबिम उतरता दीवार पर
हर किसी का रोशनी में...
वो परछाई के आगोश में
"काश" कोई पढ़ पता इसको
जो बया करती हर हाल को
काश परछाई बोल पाती
तो वो दिखाती हर एक के भीतर की
"घुटन" को.!!
©Monika Arya
परछाई