संगीत सुन लेता, सुकून मिल जाता
अलंकार बुन लेता तो जून मिल जाता,
वही जून जिसमें जुलाई का इंतज़ार करता था,
उसके साथ प्रेम-पढाई का इंतज़ार करता था
मगर खेद है; निर्वेद है मन में यह सोचकर कि
सोते समय संगीत सुनना
सबकी नींदें नष्ट करने जैसा होगा,
रोते समय अलंकार बुनना
जून के ज़ख्मों को जगाने जैसा होगा
और अगर ये ज़ख्म जाग गये
समझो सारे सुख भाग गये
अंत... की ओर
मैं नहीं... दिखूँगा चोर
तो तकलीफ़ें ताका-झाँकी
करते कहेंगी, "कुछ नहीं बचा बाँकी
यदि तू तनिक भी आवारा हो जाता,
संसार का सितारा हो जाता;
तब तुझे मून मिल जाता
और सुकून मिल जाता!!"
...by Vikas Sahni
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Form:- Poetry of Separation
Poet & Speaker:- Vikas Sahni
Music given by:- Nojoto
#ektarfapyaar