White किसी शाम मिल जाओ महीने की तनख़्वाह जैसे कम अज़ | हिंदी शायरी

"White किसी शाम मिल जाओ महीने की तनख़्वाह जैसे कम अज़ कम एक दफ़ा तो राहत मिल जाए दवा जैसे ©Kamal Kant"

 White किसी शाम मिल जाओ महीने की तनख़्वाह जैसे
कम अज़ कम एक दफ़ा तो राहत मिल जाए दवा जैसे

©Kamal Kant

White किसी शाम मिल जाओ महीने की तनख़्वाह जैसे कम अज़ कम एक दफ़ा तो राहत मिल जाए दवा जैसे ©Kamal Kant

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