.......... पिता,पिता होता है* .........
दिन भर लगे रहते हैं कमाने में , सांझ हुए घर को आते हैं।
खुद चाहे ना पढ़ लिख पाएं हों, बच्चों को तालीम जरूर दिलवाते हैं।।
पैसे बचा बचा कर नए पौधों (बच्चे) को सींचना।
कभी रहड़ी पर सब्जी बेचना, तो कभी कड़ी धूप में हल खींचना।।
चाहे फटी हो कमीज़ खुद की फिर भी बच्चों को नया अस्तर, नए खिलौने
वो बिन मांगे वो सब दिया करते हैं
वो पिता हैं ना, पिता भीतरी हकीकत भला बयां कब करते हैं
भले टूटी हो चंपल खुद की फिर भी नंगे पांव मीलों पैदल चलते हैं
बच्चों को अगर हो जाए परेशानी कोई, तो ज़ख्म उनके सीने पर लगते हैं।।
सहेजते हैं दौलत उम्र भर की बच्चों को पढ़ा सकें
और बेटी की सकुशल विदाई हो जाए ।
वो रख आते हैं खुद को गिरवी किसी महाजन की दुकान पर
कैसे भी बच्चों की हर एक ख्वाहिश पूरी की जाए।।
उम्र लगा देते हैं वो औलाद को पालने में।
गृहस्थी बनाने में, बच्चों को संभालने में।।
वो निभाते है फर्ज़ बेटे का, वो रस्में पति की भी निभाते हैं
वो सहेजते हैं आसूं उम्र भर, वो सब से छुप कर आंसू बहाते हैं।
हँसते हँसते करते हैं विदाई बेटी की
कुछ इस कदर एक पिता,
पिता होने का फर्ज़ निभाते हैं।।
©Manish Sarita(माँ )Kumar
#FathersDay