जिसपरोसि
सेक्रो की भीड़ लगी थी
मानो कोई मेला है
सामने जा देखी तो कपड़े उतार जिस्म परोसी जा रही थी
क्यो
क्योंकि पैसों का बोलबाला है
मैंने कहा क्यों हताश होती है तु
भगवान पे भरोसा रख मिलेगा तुझे सहारा
मत बना खुद कू इतना हारा हुआ
अंधेरा भरा है तेरे मन मे
बाहर निकल के देख नजर आयेगा अंधेरे मे भि तुझे एक उजाला
शर्म से मेरी आँखे झुक गयी
नजरे मे खुद से ना मिला पाई
समझाती जरूर मे एक या दो होते तो
मगर वहाँ तो सेक्रो की भीड़ लगी थी भाई
आज मे करती हु उन सबसे एक सवाल
कबतक परोसोगी इस जिस्म को बानोगी नवाब
पैदा हुई थी तू जिस दिन क्या माँ बाप ने सजाया थ ये ख्वाब
किस किस को मे संझाऊँगी
किस किससे जवाब मांगूंगी
क्यो खुद को बेच रही हो
सोच जब ये जिस्म खत्म हो जायेगी तो कैसे जी पाओगी
मान लेती हु मारते दम तक ए जिस्म तेरा साथ निभयगी
लेकिन सोचना जरूर मरने के बाद कोनसा मुह ले उपर जाओगी
क्या सुकून सी सो पाओगी
©Anwesha Rath
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