"मैं जो देख लूं उसको ज़रा गहराई से।
शर्म के मारे इश्क़-ए-जाम वो न पी पाये।।
रहें जबरन बने हम मेहमान किसी के, आशुतोष।
इससे अच्छा है खुद मेहमान-नवाज़ी की जाये।।"
©आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी"
मैं जो देख लूं उसको ज़रा गहराई से।
शर्म के मारे इश्क़-ए-जाम वो न पी पाये।।
रहें जबरन बने हम मेहमान किसी के, आशुतोष।
इससे अच्छा है खुद मेहमानवाजी की जाये।।
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