बढ़ गई है आजकल औकात हमारी
थाने में कल हुई है दरयाफ़्त हमारी
मुंसिफ़ को है मालूम पेशेवर गवाह है
शायद करेगा वो ही शनाख़्त हमारी
इस झूठ के शहर से परेशान हैं बहुत
सच की रही है आदत हज़रात हमारी
आदमी होना है अगर जुर्म तो कुबूल
और क्या होनी है तहक़ीक़ात हमारी
बस्ती है ये प्यार की,आबोहवा बेहतर
पूछी न जाए मज़हब ओ जात हमारी
एक रोज़ तो सुनें, दिल की ख्वाहिशें
एक बार तो पढ़िए दरख़्वास्त हमारी
©Lalit Saxena
शायरी दिल से