मेरे तकलीफो मे , वो मुझसे ज्यादा रोई हैं
मेरी बीमारी मे , मेरी माँ खुली आँखों से सोई हैं
थोड़ी अनपढ़ हैं, मैं दो माँगता वो चार रोटियाँ ले आती हैं
माँ तुम अपने बच्चों से इतना प्यार कैसे कर लेती हैं
माँ तकिया सुकूँ नही दे पाती
एक बार तेरे गोद मे फिर सोना है
ज़िंदगी जब ठोकर मारे
माँ उन आँशुओ को तेरे पल्लु से पोछना है
अब मालूम हुआ माँ झूठ भी बोलती थी
रसगुल्ले पसंद नही बोलकर , अपने वाले मुझे दे देती थी
मेरे खिलौने के खातिर ,माँ पापा से भी लडी है
मेरे गलतियो पर बहन बोलती " जा माँ दरवाज़े पर ही खड़ी है"
तवे पर जले हैं हाथ कितने
पर मैं एक बार भी भूखा ना सोया
माँ की किमत उससे पूछो
जिसने बचपन मे ही माँ को खोया
बचपन मे बच सकू में बुराइयों से
इसलिए उसने अपने आप को मेरा पहरेदार बनाया
ऐ खुदा सुक्रगुज़ार हू मैं तेरा
कि तुमने इतना सुंदर माँ का किरदार बनाया
©Half Notebook
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