Unsplash इस नव वर्ष में क्या कहूँ प्रिये! न ख़ु | हिंदी कोट्स

"Unsplash इस नव वर्ष में क्या कहूँ प्रिये! न ख़ुशी है, और न ही ग़म। ग़र मिल जाता तेरा संग..... तो मैं बन जाता मांझा और तु मेरी पतंग....... ग़र मिल जाता तेरा संग..... २ तो जीवन में होती एक नई उमंग.... खत्म हों जाती, प्याले और चाय की जंग..... और बदल जाती तेरे उस ग़ुलाबी ओठों का रंग...... ग़र मिल जाता तेरा संग..... २ तो मैं बन जाता नाव, और तु बन जाती समुद्र के जल की तरंग..... और डूबा लेती उस नाव को अपने संग.... ग़र मिल जाता तेरा संग.. २ तो बन जाता पहाड़, पठार.. और तु बन जाती उसकी सुरंग.. . और उस सुरंग में होता, दोनों का जीवन तंग... ग़र मिल जाता तेरा संग..... २ हाँ, माना कि मुझ में था गलतियों का महासागर .. और तुम क्षमा की क्षीर सागर... पर तेरा यूँ बिछड़ने से मेरा जीवन हो गया तंग... ग़र मिल जाता तेरा संग.....२ तो मैं बन जाता मांझा और तु मेरी पतंग...... ©अभियंता प्रिंस कुमार"

 Unsplash इस नव वर्ष में
क्या कहूँ  प्रिये! 
न  ख़ुशी है, और न ही ग़म। 
ग़र मिल जाता तेरा संग.....
तो मैं बन जाता मांझा और तु मेरी पतंग....... 
ग़र मिल जाता तेरा संग..... २
तो जीवन में होती एक नई उमंग.... 
खत्म हों जाती, प्याले और चाय की जंग..... 
और बदल जाती तेरे उस ग़ुलाबी ओठों का रंग...... 
ग़र मिल जाता तेरा संग..... २
तो मैं बन जाता नाव, और तु बन जाती समुद्र के जल की तरंग.....
और डूबा लेती उस नाव को अपने संग.... 
 ग़र मिल जाता तेरा संग.. २
तो बन जाता पहाड़, पठार.. और तु बन जाती उसकी सुरंग..
. और उस सुरंग में होता, दोनों का जीवन तंग... 
 ग़र मिल जाता तेरा संग..... २
हाँ, माना कि मुझ में था गलतियों का महासागर
 .. और तुम क्षमा की क्षीर सागर... 
पर तेरा यूँ बिछड़ने से मेरा जीवन हो गया तंग... 
ग़र मिल जाता तेरा संग.....२
तो मैं बन जाता मांझा और तु मेरी पतंग......

©अभियंता प्रिंस कुमार

Unsplash इस नव वर्ष में क्या कहूँ प्रिये! न ख़ुशी है, और न ही ग़म। ग़र मिल जाता तेरा संग..... तो मैं बन जाता मांझा और तु मेरी पतंग....... ग़र मिल जाता तेरा संग..... २ तो जीवन में होती एक नई उमंग.... खत्म हों जाती, प्याले और चाय की जंग..... और बदल जाती तेरे उस ग़ुलाबी ओठों का रंग...... ग़र मिल जाता तेरा संग..... २ तो मैं बन जाता नाव, और तु बन जाती समुद्र के जल की तरंग..... और डूबा लेती उस नाव को अपने संग.... ग़र मिल जाता तेरा संग.. २ तो बन जाता पहाड़, पठार.. और तु बन जाती उसकी सुरंग.. . और उस सुरंग में होता, दोनों का जीवन तंग... ग़र मिल जाता तेरा संग..... २ हाँ, माना कि मुझ में था गलतियों का महासागर .. और तुम क्षमा की क्षीर सागर... पर तेरा यूँ बिछड़ने से मेरा जीवन हो गया तंग... ग़र मिल जाता तेरा संग.....२ तो मैं बन जाता मांझा और तु मेरी पतंग...... ©अभियंता प्रिंस कुमार

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