मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा, तुझ तक ना सही | हिंदी कविता

"मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा, तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा। इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता, होश में हूँ जो, अपने घर तक तो पहुँचा। कहाँ आती अब मुझे वो पहले की नींद, यादों में खोकर, मैं तुझ तक तो पहुँचा। सवरने के दिन थे और मैं इश्क़ में डूबा, साहिल की तलाश में, बीच नदी तो पहुँचा। मुकम्मल इश्क़ की गुज़ारिश थी मुझे, इश्क़ में, उसके घर तक तो पहुँचा। तलाश थी मुझे उसके दिल के रास्ते की, मय कसी में ख़ुद की नीलामी में तो पहुँचा। ©theABHAYSINGH_BIPIN"

 मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा,
तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा।
इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता,
होश में हूँ जो, अपने घर तक तो पहुँचा।

कहाँ आती अब मुझे वो पहले की नींद,
यादों में खोकर, मैं तुझ तक तो पहुँचा।
सवरने के दिन थे और मैं इश्क़ में डूबा,
साहिल की तलाश में, बीच नदी तो पहुँचा।

मुकम्मल इश्क़ की गुज़ारिश थी मुझे,
इश्क़ में, उसके घर तक तो पहुँचा।
तलाश थी मुझे उसके दिल के रास्ते की,
मय कसी में ख़ुद की नीलामी में तो पहुँचा।

©theABHAYSINGH_BIPIN

मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा, तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा। इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता, होश में हूँ जो, अपने घर तक तो पहुँचा। कहाँ आती अब मुझे वो पहले की नींद, यादों में खोकर, मैं तुझ तक तो पहुँचा। सवरने के दिन थे और मैं इश्क़ में डूबा, साहिल की तलाश में, बीच नदी तो पहुँचा। मुकम्मल इश्क़ की गुज़ारिश थी मुझे, इश्क़ में, उसके घर तक तो पहुँचा। तलाश थी मुझे उसके दिल के रास्ते की, मय कसी में ख़ुद की नीलामी में तो पहुँचा। ©theABHAYSINGH_BIPIN

#सफ़र
मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा,
तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा।
इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता,
होश में हूँ जो, अपने घर तक तो पहुँचा।

कहाँ आती अब मुझे वो पहले की नींद,
यादों में खोकर, मैं तुझ तक तो पहुँचा।

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