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आंख को नींद की ज़रूरत है,
एक उम्मीद की ज़रूरत है।।
चांद ये आसमान में है छुपा ,
अब मुझे ईद की ज़रूरत है।।
राहें भटकी है मंजिलों से मेरी ,
इक नई सीध की ज़रूरत है।।
आंख दीदार को तरसती अब,
अब इन्हें दीद की ज़रूरत है।।
मंजिलें आंख से नही दिखती ,
इक नज़र गिद्ध की ज़रूरत है।।
©Vishnu Hallu
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