योजना बनाकर की गई सेवा पुण्य को बढ़ाती नहीं, बल्कि क्षीण कर देती है। यह मनुष्य के अहंकार को भी बढ़ावा देती है। इसलिए जब भी सेवा की भावना जागे ईश्वर का निर्देश समझ अचानक सेवा करें, सहयोग करें और दान करें। जो लोग ऐसा नहीं करते वे प्राकृतिक विधान में अनाधिकृत हस्तक्षेप के कारण दंड के भागी होते हैं, जिसकी वजह से वे स्वयं दुखों से पीड़ित होते हैं।
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योजना बनाकर की गई सेवा पुण्य को बढ़ाती नहीं, बल्कि क्षीण कर देती है। यह मनुष्य के अहंकार को भी बढ़ावा देती है। इसलिए जब भी सेवा की भावना जागे ईश्वर का निर्देश समझ अचानक सेवा करें, सहयोग करें और दान करें। जो लोग ऐसा नहीं करते वे प्राकृतिक विधान में अनाधिकृत हस्तक्षेप के कारण दंड के भागी होते हैं, जिसकी वजह से वे स्वयं दुखों से पीड़ित होते हैं।
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