White यह कहानी एक छोटे से गांव के लड़के अमन की है, जो अपने सपनों को सच करने के लिए संघर्ष करता है। अमन का सपना था एक बड़ा क्रिकेटर बनने का, लेकिन उसके पास साधन और सुविधाएँ नहीं थीं। गाँव में न तो अच्छे कोच थे और न ही कोई प्रैक्टिस का मैदान। लेकिन अमन के पास एक चीज़ थी—उसका अडिग जज़्बा और मेहनत।
अमन का बचपन खेतों में गुजरा, जहाँ वह अपने दोस्तों के साथ पत्थरों से क्रिकेट खेलता था। उसके पिता किसान थे और उन्हें लगता था कि अमन को भी खेती में हाथ बंटाना चाहिए। लेकिन अमन का दिल क्रिकेट में ही बसता था। गाँव में जब भी कोई त्यौहार होता, वह अपनी गेंद और बल्ला लेकर मैदान में उतर जाता। धीरे-धीरे उसके खेल की चर्चा आसपास के गाँवों में भी होने लगी।
एक दिन गाँव में शहर से एक टीम आई, जो बच्चों के साथ एक क्रिकेट मैच खेलने वाली थी। अमन को भी इस टीम में खेलने का मौका मिला। उसने उस दिन अपनी मेहनत और हुनर से सभी का दिल जीत लिया। टीम के कोच, जो शहर से आए थे, अमन के खेल से प्रभावित हुए और उसे शहर में आकर ट्रेनिंग लेने का प्रस्ताव दिया।
अमन के लिए यह सपना सच होने जैसा था, लेकिन उसके सामने एक बड़ी चुनौती थी। उसके पिता को खेती के लिए अमन की ज़रूरत थी, और शहर जाकर क्रिकेट खेलना उनके लिए सिर्फ समय की बर्बादी लगती थी। अमन ने अपने पिता से बहुत विनती की, लेकिन उन्होंने साफ़ मना कर दिया।
अमन हताश था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह रात को खेतों में काम करता और दिन में क्रिकेट की प्रैक्टिस। उसके इस समर्पण को देखकर गाँव के बुजुर्गों ने उसके पिता को समझाया कि अमन के पास एक बड़ी प्रतिभा है और उसे मौका मिलना चाहिए।
आखिरकार, अमन के पिता ने उसे शहर जाने की इजाजत दे दी। शहर में जाकर अमन ने कोच के निर्देशन में कठिन ट्रेनिंग शुरू की। वहाँ उसे समझ में आया कि क्रिकेट सिर्फ ताकत का खेल नहीं, बल्कि उसमें तकनीक, मानसिकता और अनुशासन का भी बड़ा योगदान होता है।
कुछ सालों की मेहनत के बाद अमन ने राज्य स्तर पर अपनी पहचान बना ली। उसकी मेहनत रंग लाई और उसे राष्ट्रीय टीम में चुन लिया गया। जब वह पहली बार भारत की जर्सी पहनकर मैदान में उतरा, तो उसके पिता की आंखों में गर्व के आंसू थे।
अमन की कहानी उस जज़्बे की है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद भी सपनों को सच करने की राह खोज लेती है।
©Aditya Vardhan Gandhi
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