उसे चाहना सोचना बस में होता तो यूं मैं लिख नही रही होती।
हर बार, हर आदत में, हर नई शुरुवात में हजारों बार उसी गलती को उसी के लिए दोहराती हूं।
हर हर्फ बोलने से पहले उसके शब्द याद आ जाते हैं।
उसके हिस्से की बातें भी खुद से करके में कभी थकती ही नही हूं।
शायद उसके हर जवाब में मैं ही थी, इसलिए उसका हर जवाब मुझे पहले से मालूम होता है।
उसकी हर cheese line उस समय में बचकानी कहती थी।
अब अकेले बैठ कर उन्ही बातों को खुद में हजारों बार जीती हूं।
उससे भले ही हर बार बोला हो तुम्हारी किसी भी बात पे भरोसा नही होता,
पर उसकी बातें जहन से जाती भी नही।
सोचती हूं तुझे, फिर खुद को झंझोर कर वापस ले आती हूं।
जानती हूं सब पीछे छूट गया, सब धूल गया है वक्त की बारिश में।
कभी सोचती हूं इसमें भीग कर रो लूं जी भर के
पर जाने क्यों दिल भर जाता है पर आंखें नही भरती।
©Deeksha shah
#sadquote कुछ उसकी बातें खुद से।