वक्त की बेरुखी कहूं किआदमी की खता। कि मै ऐसा कहूं | हिंदी कविता Video

"वक्त की बेरुखी कहूं किआदमी की खता। कि मै ऐसा कहूं है यही जुल्मों की सजा।। लाख कोशिश के बाद वक्त बदलता ही नहीं। गिरता रहता है बसर गिर के उठता ही नहीं।। कोशिशें हों बेअसर नहीं जीने की वजह।। उसकी मजबूरियों की कोई इन्तेहा ही नहीं। उसकी मजलूमियत पे उसकी चाहतें हैं अता।। सब कुछ है उसके पास जो भी जिंदगी को चाहिए। चाहत भी है हिम्मत भी है है हौसला भी वा खुदा।कुछ रुकावट ऐसी है जिन पर किसी का वश नहीं। अपने ही ना साथ दें या अपना न हो तो क्या मजा।। दर्द होता है लुटें जब पहले लुट जाने के बाद। प्यासे रह जाएं समंदर तक पहुंच जाने के बाद।। ©Aashutosh Aman. "

वक्त की बेरुखी कहूं किआदमी की खता। कि मै ऐसा कहूं है यही जुल्मों की सजा।। लाख कोशिश के बाद वक्त बदलता ही नहीं। गिरता रहता है बसर गिर के उठता ही नहीं।। कोशिशें हों बेअसर नहीं जीने की वजह।। उसकी मजबूरियों की कोई इन्तेहा ही नहीं। उसकी मजलूमियत पे उसकी चाहतें हैं अता।। सब कुछ है उसके पास जो भी जिंदगी को चाहिए। चाहत भी है हिम्मत भी है है हौसला भी वा खुदा।कुछ रुकावट ऐसी है जिन पर किसी का वश नहीं। अपने ही ना साथ दें या अपना न हो तो क्या मजा।। दर्द होता है लुटें जब पहले लुट जाने के बाद। प्यासे रह जाएं समंदर तक पहुंच जाने के बाद।। ©Aashutosh Aman.

#बेरुखी

People who shared love close

More like this

Trending Topic