*मर गई हूं खुद मे ही कहीं*
सुबह का सूरज अब निकलता नहीं
रात का अंधेरा अब हटता नहीं
हंसता मेरे साथ अब कोई दिखता नहीं
रोना मेरा अब थमता नहीं
इतना अंधेरा लगता है मेरे चारो ओर
कोई क्यूं ये मिट्टी मुझ पर से हटाता नहीं
चार फूल ले कर जो आते हैं
वो ज्यादा देर अब मेरे पास रुकते क्यू नही
सफ़ेद चादर ओढ़ कर बैठी हूं
कोई मेरे लिए लाल रंग की ओढ़नी लाता क्यूं नहीं
कोई मेरे पास आता क्यूं नहीं।
तुम तो कहते थें आखरी सांस तक हूं तेरे साथ
तुम भी तो अब मुझे दिखते क्यूं नही।
©Kaju Gautam
🌚#akelapan