चंदा वे चंदा तू क्यूँ बनता बिगड़ता है । ये रात तेरी | हिंदी कविता

"चंदा वे चंदा तू क्यूँ बनता बिगड़ता है । ये रात तेरी है क्यूँ छोड़ बिछड़ता है ।। देख कभी आ खिड़की से ओ हरजाई । काला काला आंसमा कैसे बिखरता है ।। ©Devansh Parashar"

 चंदा वे चंदा तू क्यूँ बनता बिगड़ता है ।
ये रात तेरी है क्यूँ छोड़ बिछड़ता है ।।
देख कभी आ खिड़की से ओ हरजाई ।
काला काला आंसमा कैसे बिखरता है ।।

©Devansh Parashar

चंदा वे चंदा तू क्यूँ बनता बिगड़ता है । ये रात तेरी है क्यूँ छोड़ बिछड़ता है ।। देख कभी आ खिड़की से ओ हरजाई । काला काला आंसमा कैसे बिखरता है ।। ©Devansh Parashar

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