उम्र कट रही है दरबदर भटकते हुए, हर र | हिंदी विचार

"उम्र कट रही है दरबदर भटकते हुए, हर रात आंखे नम कर घर चल दिया करता हूं। बेचैन सा रहता है तन-बदन मेरा, मां,मंजिल देख कर हर सुबह दफ़्तर चल दिया करता हूं। ©R.D. Akshay Manral"

 उम्र   कट    रही    है   दरबदर   भटकते   हुए,
हर रात आंखे नम कर घर  चल दिया करता हूं।

बेचैन  सा  रहता  है  तन-बदन  मेरा, 
मां,मंजिल देख कर हर सुबह दफ़्तर चल दिया  करता  हूं।

©R.D. Akshay Manral

उम्र कट रही है दरबदर भटकते हुए, हर रात आंखे नम कर घर चल दिया करता हूं। बेचैन सा रहता है तन-बदन मेरा, मां,मंजिल देख कर हर सुबह दफ़्तर चल दिया करता हूं। ©R.D. Akshay Manral

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