मैं चलता हूं...
मैं ईस्वी २०२३,
हर कोई नाराज़ हैं, मैं जा रहा हूं,
हर किसी को सिर्फ शिकायत हैं मुझसे और आने वाले साल से बेहद उम्मीदें,
वैसे ही जैसे मुझे आते देख कर पिछले साल से थीं शिकायतें और मुझसे उम्मीद,
पर, आप लोगों से एक सवाल है,
क्या आप अपनी बेहूदा गलतियों को कभी स्वीकार कर सकेंगे?
या सदा की तरह, ढलते सल पर सारा इलज़ाम लगा कर मुक्त होते रहेंगे।।
खैर नमन है, आप मतलबी बेहूदा लोगों को...
मित्र २०२४ बहुत खुश होने से बचना, तुम भी मेरी तरह ढलने आयें हो...🙏🙏🙏
©"संगीतेय"
#मतलव निकल गया तो पहचानते नहीं...