घूम आया हूँ मैं अज़ाबो का शहर
कहीं भी तेरा नक्श न दिखा,
मुझे अपने गुनाह दिखे
मगर तेरा एक भी गुनाह न दिखा,
कितने चर्चे थे तेरे भी
कितनो को तूने मारा था,
मैंने भी तुझसे इश्क़ किया था
मुझे भी तूने मारा था,
पहले तेरे इश्क़ से टूटा
फिर ख़ुद से भी तो हारा था,
मेरे सवाबो का नतीजा मुझको तू मिला
मर के तेरे हाथों से मुझको सुकून मिला,
सोचता हूँ कि तेरे गुनाहों की सज़ा कैसी होगी
ना मैं रहूँगा अब ये कज़ा कैसी होगी,
अब रो-रो कर मुझको तेरे ये अश्क न दिखा
यही तक सफ़र था जानाँ और इश्क़ न सीखा ।
©Adeep
घूम आया हूँ मैं अज़ाबो का शहर
कहीं भी तेरा नक्श न दिखा,
मुझे अपने गुनाह दिखे
मगर तेरा एक भी गुनाह न दिखा,
कितने चर्चे थे तेरे भी
कितनो को तूने मारा था,
मैंने भी तुझसे इश्क़ किया था
मुझे भी तूने मारा था,