घुटता हुआ बचपन
सिमटती हुई आकांक्षाएं
दफन होती हक की आवाज़ें
सिसकियों में गुज़रती रात
गहराती रात की भांति डूबता जीवन
फ़िर सुबह काम मिलने की आस
बिलखती मासूम आवाज़ें
भट्टियों में झुलसता मासूम बचपन
फ़िर से गुलाम होती कुछ आवाज़ें!!
- अपनी कलम 🖋️
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