क्या कोई बैर है अपनों से,या आंखों में चुभते सपनों | हिंदी कविता Video

"क्या कोई बैर है अपनों से,या आंखों में चुभते सपनों से ? बुझ रही उम्मीदों से ? अधूरी लकीरों से ? गहरे काले अंधेरों से ? ना हो रहे सवेरों से ? बादल गम के छाए है कैसे? कैसे भंवर तुम्हें हैं घेरे ? मैं सुंनूगा, मुझे से कहो आओ बैठो पास मेरे !! ©Pawan Shah "

क्या कोई बैर है अपनों से,या आंखों में चुभते सपनों से ? बुझ रही उम्मीदों से ? अधूरी लकीरों से ? गहरे काले अंधेरों से ? ना हो रहे सवेरों से ? बादल गम के छाए है कैसे? कैसे भंवर तुम्हें हैं घेरे ? मैं सुंनूगा, मुझे से कहो आओ बैठो पास मेरे !! ©Pawan Shah

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