क्या कोई बैर है अपनों से,या
आंखों में चुभते सपनों से ?
बुझ रही उम्मीदों से ?
अधूरी लकीरों से ?
गहरे काले अंधेरों से ?
ना हो रहे सवेरों से ?
बादल गम के छाए है कैसे?
कैसे भंवर तुम्हें हैं घेरे ?
मैं सुंनूगा, मुझे से कहो
आओ बैठो पास मेरे !!
©Pawan Shah
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