चक्रब्यूह ............. दिनों दिन बुनते हुए सपने | हिंदी कविता Video

"चक्रब्यूह ............. दिनों दिन बुनते हुए सपने बढ़ती हुई अभिलाषायें और उड़ान की चाहत के बीच उतरती चढ़ती मानव की मन: स्थिति कभी कभी ऐसी फंस जाती है जैसे हो मकड़ी के जाले बीच अंधकार से भरे चक्रब्यूह में बेचैन, भटकता उस चक्रब्यूह को तोड़ने की जितना कोशिश करता है फंसता ही चला जाता है हजार कोशिशें करता है पर निकलने में नाकाम रहता है बस फंसता ही चला जाता है अन्त में थक हार कर अपने को छोड़ देता है सारी इच्छाओं को छूटते देखता हुआ ठगा सा छटपटाता हुआ समर्पण कर देता है सदा के लिए सो जाता है अंधेरे चक्रव्यूह में समा जाता है| @वीएस दीक्षित ©vs dixit "

चक्रब्यूह ............. दिनों दिन बुनते हुए सपने बढ़ती हुई अभिलाषायें और उड़ान की चाहत के बीच उतरती चढ़ती मानव की मन: स्थिति कभी कभी ऐसी फंस जाती है जैसे हो मकड़ी के जाले बीच अंधकार से भरे चक्रब्यूह में बेचैन, भटकता उस चक्रब्यूह को तोड़ने की जितना कोशिश करता है फंसता ही चला जाता है हजार कोशिशें करता है पर निकलने में नाकाम रहता है बस फंसता ही चला जाता है अन्त में थक हार कर अपने को छोड़ देता है सारी इच्छाओं को छूटते देखता हुआ ठगा सा छटपटाता हुआ समर्पण कर देता है सदा के लिए सो जाता है अंधेरे चक्रव्यूह में समा जाता है| @वीएस दीक्षित ©vs dixit

#चक्रव्यूह

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