जब मैंने उसको काले लिबास में देखा था,
उसको मैंने खुद का काला टीका समझा था|
वो कहता था तुमपे लाल रंग खूब जच़ता है,
तो मैंने भी उस दिन उसका पंसदीदा रंग ओढ़ा था|
उसे मैं खुले हुए केशों में अच्छी लगती थी,
तो मैंने अपने बंधे केशों को उसके लिए खुला रखा था|
उसे मेरे चेहरे पर सिर्फ मुस्कुराहट पसंद थी,
तो मैंने भी अपने आंसुओं को काजल से छिपाया था|
©Shilpa Singh
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