सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ,
सुबह की पहली लाली द्वारा पकड़ लिए जाने पर,
सकुचाने और लजाने की चेष्टा में,
बिल्कुल तुम्हारे मुखड़े की माधुर्य की तरह खिल जाती है।
और इस तरह ओस की बूँदों पर
कलियों का प्रेम छिपने के बजाए,
और भी जाहिर हो जाता है।
ठीक इसी तरह,
क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिले मुस्कान से,
मुझपर तुम्हारा प्रेम जाहिर नहीं होता?
©Vikram Kumar Anujaya
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