तुम गुण की खान, आनंदज्ञान,
देवों पे कृपा तुम करते हो,
तुम दैत्य नाश भी करते प्रभु,
सृष्टि को नाच नचाते हो,
पूर्ति करते, अभिलाषा की,
तुम ही निकुंज में विराजते,
हे नृत्य नाट्य के मूल स्रोत,
घनश्याम! मेरा शत–शत प्रणाम।। श्री.....
©Tara Chandra
श्रीकृष्ण _स्तुति 7/8