सड़क
शांत सुनसान पड़ी वो सड़क
देखो कैसे अठखेली करती,
सतधारी किशोर की भांति..
अजीब रोदन,कभी विमूड़
तम का रूप धरती।
तुम निष्पक्ष, विनम्रता की मूरत हो
दिखाती सबको रास्ता..
तुम सौहार्द की पूरक हो।
कर कर्म का विमोचन
तुम अति कार्मिक भी हो,
हर उस प्रतीक्षारत मां के
मन की सांतवना भी हो।
अंधकार में पथिक का सहारा बन
उसका साथ निभाती हो
कर मार्गदर्शन कर्म क्षेत्र का
अपना पुण्य हरती हो।
शांत सुनसान पड़ी वो सड़क
देखो कैसे अठखेली करती..
अजीब रोदन, कभी विमूड़
तम का रूप धरती
तम का रूप धरती।
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