निकाह के बाद गैरों से गुफ्तगू की आजादी कहां,
दिल का दर्द, मोहब्बत की रिवायतें बदलनी चाहिए।
मेरी हजारों गजलें, नगमें, नज्में सब बेकार है,
मुद्दा है कि असरारो से लैला बहलनी चाहिए।
वह मोहब्बत ही क्या जो आसानी से हासिल हो जाए,
मेरे महबूब की काबिलियत से पूरी दुनिया जलनी चाहिए।
अलग लिबास, अलग सोच, अलग जुबान यहां नहीं चलेगी,
यहां जीने के लिए दुनिया के सांचे में शख्सियत ढलनी चाहिए।
लफ्ज़ों की तिजारत से बेहतर तो कुछ आता नहीं मुझको,
इस बड़े शहर में जिंदा रहना है तो कलम चलनी चाहिए।
सियासत के लिए दंगे करवाने वाले तो होते ही नहीं इंसान,
मजहब हो कोई भी, जात हो कोई भी इंसानियत संभलनी चाहिए।
लड़कों की रात भी अपनी, लड़कियों की हदें हैं सिर्फ शाम तक,
अब घर से बाहर ये आफताब के बाद निकलनी चाहिए।
©OJASWI SHARMA
गुफ़्तगू की आज़ादी...
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