Guru Purnima क्या करूं बदले में अर्पण, ज्ञान दाता | हिंदी कविता

"Guru Purnima क्या करूं बदले में अर्पण, ज्ञान दाता आप हैं। बह रहे निर्मल सरित से, धुल रहे सब पाप हैं। चलना था बेहद कठिन, जिंदगी की राह में। मिल गया सानिध्य गुरुवर, मिट गया संताप है। सब गिनाते रह गए, जो भी मुझमें थी कमी। गुरु ने मुझको यूं संवारा, धुल गए सब दाग हैं। कर सकूं महिमा का वर्णन,है नही सामर्थ मेरा। शब्द नतमस्तक हुए, गुरु स्वयं ही मंत्र जाप हैं। ©Rinki Kamal Raghuwanshi surbhi"

 Guru Purnima क्या करूं बदले में अर्पण, ज्ञान दाता आप हैं।
बह रहे निर्मल सरित से, धुल रहे सब पाप हैं।

चलना था बेहद कठिन, जिंदगी की राह में।
मिल गया सानिध्य गुरुवर, मिट गया संताप है।

सब गिनाते रह गए, जो भी मुझमें थी कमी।
गुरु ने मुझको यूं संवारा, धुल गए सब दाग हैं।

कर सकूं महिमा का वर्णन,है नही सामर्थ मेरा।
शब्द नतमस्तक हुए, गुरु स्वयं ही मंत्र जाप हैं।

©Rinki Kamal Raghuwanshi surbhi

Guru Purnima क्या करूं बदले में अर्पण, ज्ञान दाता आप हैं। बह रहे निर्मल सरित से, धुल रहे सब पाप हैं। चलना था बेहद कठिन, जिंदगी की राह में। मिल गया सानिध्य गुरुवर, मिट गया संताप है। सब गिनाते रह गए, जो भी मुझमें थी कमी। गुरु ने मुझको यूं संवारा, धुल गए सब दाग हैं। कर सकूं महिमा का वर्णन,है नही सामर्थ मेरा। शब्द नतमस्तक हुए, गुरु स्वयं ही मंत्र जाप हैं। ©Rinki Kamal Raghuwanshi surbhi

#गुरु

#Gurupurnima

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