कब तक तुम्हारी हरकतों को सहते,दिल पर वफ़ा का बोझ उ

"कब तक तुम्हारी हरकतों को सहते,दिल पर वफ़ा का बोझ उठाते अपने जी को जलाते रहे हम, ना नींद आती ,ना रात गुजरती कब तक हम अपनी मौत को डराते"

 कब तक तुम्हारी हरकतों को सहते,दिल पर वफ़ा का बोझ उठाते 
अपने जी को जलाते रहे हम, ना नींद आती ,ना रात गुजरती
कब तक हम अपनी मौत को डराते

कब तक तुम्हारी हरकतों को सहते,दिल पर वफ़ा का बोझ उठाते अपने जी को जलाते रहे हम, ना नींद आती ,ना रात गुजरती कब तक हम अपनी मौत को डराते

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