क़ानून जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी उस पर अमल भी है.... अन्याय के बाद न्याय किस काम का... न्याय किसी के मन के घाव को नहीं भर सकता ना ही किसी को उस स्वतंत्रता का आभास दे सकता है जो वो अनुभव करता था.... बीता हुआ समय और खोया हुआ व्यक्ति वापस नहीं आता....तो न्याय ज़रूरी है हर अन्याय से पहले...हर व्यक्ति को उसकी और दूसरों की सीमा का मर्यादा पता होना चाहिए.... देश तरक्की करता रहेगा नैतिकता गिरती रहेगी... क़ानून के साथ-साथ नैतिकता पर जोर दिया जाए तो शायद स्थिति में कुछ सुधार हो। नहीं तो क़ानून ऐसे ही ठण्डे बस्ते में अपने होने का दुःख मनाएगा...
©Saba Rasheed
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