जख्मों को पन्नो में उतार रहा हूं बर्बाद किस्मत को फिर से संवार रहा हूं भटका हुआ मुसाफिर था पहले अब अपनी मंजिल तक जाने का रास्ता तलाश रहा हूं इंसानों को परखने का ख्याल था जहन में तो विस्वास करके गलती कर बैठा अब हर पल अपनी गलती को ठोकर खाकर संभाल रहा हूं
©Mr K...(मेरे एहसास मेरी कलम से)