शब्दों की महफूजी है
कागज का सूनापन
स्याही क्या ही कलम में
है एक सूखा दर्पण
यह दर्पण है
तेरे उसे चाहत का
तेरे मन स्वाभिमान का
यह दर्पण है
इसे सूखने ना दे
अपने नम आंखों से
इसे भेजना ना दे
दोस्ती की हरियाली से
दर्पण को सूखने ना दे
हरियाली कभी कम नहीं होती
अपने आंखों से नम न होने दे
शायद यह पसंद की हवा जैसा
जो रुख ना मोड़े चले जा रहे हैं
अब क्या ही कहें तुमको
तुम ही बतादो
शायद शीतल सी है इसकी वाणी
शायद इसकी मधुर मुस्कान
है इसके हर बातों की बोली
याद कर उन फलों को
जब यह दर्पण ना सुख था
फिर मौका मिल रहा
निखार दे इस दर्पण को
©Alok Kumar
सुना दर्पण
#moonnight