White आखिर, ये कैसा नव वर्ष है ना बदली, दिशाएँ | हिंदी कविता

"White आखिर, ये कैसा नव वर्ष है ना बदली, दिशाएँ हवा की, ना बदली, रंगत फिज़ा की नए गुल भी तो, खिले नहीं, नक्षत्र जगह से, हिले नहीं ना धरा को ही, हुआ हर्ष है, आखिर, ये कैसा नव वर्ष है छोड़ कर, दिनकर का साथ, तिथी बदल ली, आधी रात ना दिखे, प्रकृति में बदलाव, ना ही बदले, मौसम के भाव जारी धरा का, सूर्य से कर्ष है, आखिर ये, कैसा नव वर्ष है देखो कभी नववर्ष, सनातनी, खिल जाती है, जब अवनी जब महक, चहुँओर बिखरती, प्रकृती भी, फिर से सँवरती होता जब, मन का उत्कर्ष है, ऐ "अश्क" वो मेरा नव वर्ष है बस वही मेरा नव वर्ष है अरविन्द "अश्क" ©Arvind Rao"

 White आखिर, ये कैसा नव वर्ष है


ना  बदली, दिशाएँ  हवा की, ना बदली, रंगत फिज़ा की 
नए गुल भी तो, खिले नहीं, नक्षत्र जगह से, हिले नहीं 
ना धरा को ही, हुआ हर्ष है, आखिर, ये कैसा नव वर्ष है

छोड़ कर, दिनकर का साथ, तिथी बदल ली, आधी रात 
ना दिखे, प्रकृति में बदलाव, ना ही बदले, मौसम के भाव 
जारी धरा का, सूर्य से कर्ष है, आखिर ये, कैसा नव वर्ष है

देखो कभी नववर्ष, सनातनी, खिल जाती है, जब अवनी 
जब महक, चहुँओर बिखरती, प्रकृती भी, फिर से सँवरती 
होता जब, मन का उत्कर्ष है, ऐ "अश्क" वो मेरा नव वर्ष है

बस वही मेरा नव वर्ष है 
अरविन्द "अश्क"

©Arvind Rao

White आखिर, ये कैसा नव वर्ष है ना बदली, दिशाएँ हवा की, ना बदली, रंगत फिज़ा की नए गुल भी तो, खिले नहीं, नक्षत्र जगह से, हिले नहीं ना धरा को ही, हुआ हर्ष है, आखिर, ये कैसा नव वर्ष है छोड़ कर, दिनकर का साथ, तिथी बदल ली, आधी रात ना दिखे, प्रकृति में बदलाव, ना ही बदले, मौसम के भाव जारी धरा का, सूर्य से कर्ष है, आखिर ये, कैसा नव वर्ष है देखो कभी नववर्ष, सनातनी, खिल जाती है, जब अवनी जब महक, चहुँओर बिखरती, प्रकृती भी, फिर से सँवरती होता जब, मन का उत्कर्ष है, ऐ "अश्क" वो मेरा नव वर्ष है बस वही मेरा नव वर्ष है अरविन्द "अश्क" ©Arvind Rao

#नव वर्ष

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