भटक रहे हैं हम यूँ ही दर-ब-दर
दिल को कोई आसरा मिलता नहीं
खुदा निगहेंबा हो जाए गर हमारा
ज़फा-ए-ज़िंदगी से मिल जाए किनारा हमें
रोशनी की तलाश अब ख़त्म
अब अँधेरे हमें रास आने लगे
जब से खुश रहने की उम्मीद छोड़ी है
तब से मुस्कुराने लगे
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