आज श

"आज शाम मेरी माँ............. सहमी सी है वो नज़रे । मेरी सफालता की राह निहारती है ।। बूढ़ी हो रही है वो नज़रे । लेकिन हर उदासी मे मेरी ताकत बन जाती है ।। नज़रो का खेल बड़ा अनोखा है साहब । मेरे हर कष्ट मे रो पड़ती है। हर वक्त कृपा की दृष्टि से निहारती ।। माँ की नज़रे होती है ।। ©-प्रताप "

आज शाम मेरी माँ............. सहमी सी है वो नज़रे । मेरी सफालता की राह निहारती है ।। बूढ़ी हो रही है वो नज़रे । लेकिन हर उदासी मे मेरी ताकत बन जाती है ।। नज़रो का खेल बड़ा अनोखा है साहब । मेरे हर कष्ट मे रो पड़ती है। हर वक्त कृपा की दृष्टि से निहारती ।। माँ की नज़रे होती है ।। ©-प्रताप

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