अब इस वक्त पर क्या कहेंगे हम जब हर रोज आने वाला सव | हिंदी कविता

"अब इस वक्त पर क्या कहेंगे हम जब हर रोज आने वाला सवेरा हैं उम्मीद और ढलती शाम बैचेनी और उलझे हुए खुद में तों क्या ही देंगे तेरे हम... लौटेंगे हम खुद में भी ख्वाब भी पूरे होंगे अभी कसर हैं थोड़ा सा जब मेहनत पूरे होंगे.. ©prahlad mandal"

 अब इस वक्त पर क्या कहेंगे हम
जब हर रोज आने वाला सवेरा हैं उम्मीद
और ढलती शाम बैचेनी
और उलझे हुए खुद में
तों क्या ही देंगे तेरे हम...

लौटेंगे हम खुद में भी
ख्वाब भी पूरे होंगे
अभी कसर हैं थोड़ा सा
जब मेहनत पूरे होंगे..

©prahlad mandal

अब इस वक्त पर क्या कहेंगे हम जब हर रोज आने वाला सवेरा हैं उम्मीद और ढलती शाम बैचेनी और उलझे हुए खुद में तों क्या ही देंगे तेरे हम... लौटेंगे हम खुद में भी ख्वाब भी पूरे होंगे अभी कसर हैं थोड़ा सा जब मेहनत पूरे होंगे.. ©prahlad mandal

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