हर बात का
वो गुनाह मेरा है,
सब उसूलों को उसने,
ताक पर रख छोड़ा है।
हक़ीक़त के मेहराबों से
अब तकरार करते हैं,
नफ़रत का ही सही,
चलो इकरार करते हैं।
...
इस बात में भी
कोई बात नही,
ज़ख्म मेरा है,
कुछ ख़ास नही।
इन ख़ामोशी का,
अब रूबाब मिटे।
तुम जलो
तो कुछ आवाज़ उठे,
अपनी शर्तों को अब,
चलो बेज़ार करते हैं,
नफ़रत का ही सही,
चलो इकरार करते हैं।... _ashant
©Charitendra Verma
#FindingOneself tarkarat