जब राग प्रीत के चिढ़ते हैं पंछी कलरव कर फिरते हैं | हिंदी Poetry

"जब राग प्रीत के चिढ़ते हैं पंछी कलरव कर फिरते हैं तितली फिर क्रीडा करती है डाली-डाली पर फिरती है वह फूल खिले मुस्काते हैं शीतल पवनों के झोंके जैसे कोई गीत सुनाते हैं देवालय में शंखनाद सुन हृदय तृप्त हो जाता है वो लीन प्रभु की भक्ति में फिर दूर कहीं खो जाता है। वह देखो बादल के गोले बरस-बरस कर हमसे बोले, डाली पर वह सुंदर झूला बच्चों का लगता फिर मेला वह दूर खड़े वृक्षो को देखो मस्ती में कैसे झूम रहे जैसे अंबर को चुम रहे हो यह दृश्य बड़ा मनभावन है यह पावन माह ही सावन है। ©khusboo bagri"

 जब राग प्रीत के चिढ़ते हैं 
पंछी कलरव कर फिरते हैं
 तितली फिर क्रीडा करती है 
डाली-डाली पर फिरती है 
वह फूल खिले मुस्काते हैं 
शीतल पवनों के झोंके जैसे कोई गीत सुनाते हैं 
देवालय में शंखनाद सुन
 हृदय तृप्त हो जाता है 
वो लीन प्रभु की भक्ति में 
फिर दूर कहीं खो जाता है।
वह देखो बादल के गोले
 बरस-बरस कर हमसे बोले,
डाली पर वह सुंदर झूला
 बच्चों का लगता फिर मेला 
वह दूर खड़े वृक्षो को देखो 
मस्ती में कैसे झूम रहे
 जैसे अंबर को चुम रहे हो 
यह दृश्य बड़ा मनभावन है
 यह पावन माह ही सावन है।

©khusboo bagri

जब राग प्रीत के चिढ़ते हैं पंछी कलरव कर फिरते हैं तितली फिर क्रीडा करती है डाली-डाली पर फिरती है वह फूल खिले मुस्काते हैं शीतल पवनों के झोंके जैसे कोई गीत सुनाते हैं देवालय में शंखनाद सुन हृदय तृप्त हो जाता है वो लीन प्रभु की भक्ति में फिर दूर कहीं खो जाता है। वह देखो बादल के गोले बरस-बरस कर हमसे बोले, डाली पर वह सुंदर झूला बच्चों का लगता फिर मेला वह दूर खड़े वृक्षो को देखो मस्ती में कैसे झूम रहे जैसे अंबर को चुम रहे हो यह दृश्य बड़ा मनभावन है यह पावन माह ही सावन है। ©khusboo bagri

sawan man bhawan🌺🌧

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