(आदर्श नीति १/१६)
एकमप्यक्षरं यस्तु गुरू: शिष्ये निवेदयेत्।
पृथिव्यां नास्ति तद्द्रव्यं यद्दत्वा ह्यनृणी भवेत्।।१६।।
अर्थ/ यदि गुरु ने शिष्य को एक अक्षर भी पढ़ाया है, तो पृथ्वी में ऐसी कोई वस्तु नही जिसे शिष्य गुरू को देकर उनके ऋण से मुक्त हो सके।
©राधिका किशोरी (किशोरी जी)
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