ना जाने इश्क़ की ये कैसी शाम है बड़ी जतन से लगा मु | हिंदी शायरी

"ना जाने इश्क़ की ये कैसी शाम है बड़ी जतन से लगा मुझपे इल्जाम है मैंने कोशिशें कीं सब सही करने को फ़िर भी मेरी हर कोशिश नाकाम है ये तेरा चेहरा और उसपे ये ग़ुस्सा इसपर ये दिल कुर्बान सरे-आम है तुझे शायद इस बात की खबर नहीं मेरी ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे ही नाम है रूह से रूह तक का है तेरा मेरा रिश्ता तेरे नाम से गूँजता दिल का दर-ओ-बाम है ©Shashank Tripathi"

 ना जाने इश्क़ की ये कैसी शाम है
बड़ी जतन से लगा मुझपे इल्जाम है

मैंने कोशिशें कीं सब सही करने को
फ़िर भी मेरी हर कोशिश नाकाम है

ये तेरा चेहरा और उसपे ये ग़ुस्सा
इसपर ये दिल कुर्बान सरे-आम है

तुझे शायद इस बात की खबर नहीं
मेरी ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे ही नाम है

रूह से रूह तक का है तेरा मेरा रिश्ता
तेरे नाम से गूँजता दिल का दर-ओ-बाम है

©Shashank Tripathi

ना जाने इश्क़ की ये कैसी शाम है बड़ी जतन से लगा मुझपे इल्जाम है मैंने कोशिशें कीं सब सही करने को फ़िर भी मेरी हर कोशिश नाकाम है ये तेरा चेहरा और उसपे ये ग़ुस्सा इसपर ये दिल कुर्बान सरे-आम है तुझे शायद इस बात की खबर नहीं मेरी ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे ही नाम है रूह से रूह तक का है तेरा मेरा रिश्ता तेरे नाम से गूँजता दिल का दर-ओ-बाम है ©Shashank Tripathi

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