ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सा | हिंदी शायरी

"ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा जो प्यार सावन का इक नज़र देख लूँ अगर तुमको । तब ही आये करार सावन का वो न आयेगा पास में मेरे क्यों करूँ इंतज़ार सावन का  दिल में जबसे बसे हो तुम दिलबर रोज़ होता दीदार सावन का आप आये हो मेरी महफ़िल में चढ़ रहा है खुमार सावन का  आस ये आखिरी मेरे दिल की करके आओ शृंगार सावन का आप क्यों अब चले नही आते  कुछ तो होगा उधार सावन का बिन सजन मान लो प्रखर तुम भी  खो ही जाता करार सावन का  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 ग़ज़ल :-
बीता मौसम हज़ार सावन का
आप बिन क्या शुमार सावन का
तुझको धानी चुनर में जब देखा
मैं हुआ हूँ शिकार सावन का
बात बनती नज़र नही आती
है अधूरा जो प्यार सावन का
इक नज़र देख लूँ अगर तुमको ।
तब ही आये करार सावन का
वो न आयेगा पास में मेरे
क्यों करूँ इंतज़ार सावन का 
दिल में जबसे बसे हो तुम दिलबर
रोज़ होता दीदार सावन का
आप आये हो मेरी महफ़िल में
चढ़ रहा है खुमार सावन का 
आस ये आखिरी मेरे दिल की
करके आओ शृंगार सावन का
आप क्यों अब चले नही आते 
कुछ तो होगा उधार सावन का
बिन सजन मान लो प्रखर तुम भी 
खो ही जाता करार सावन का 

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- बीता मौसम हज़ार सावन का आप बिन क्या शुमार सावन का तुझको धानी चुनर में जब देखा मैं हुआ हूँ शिकार सावन का बात बनती नज़र नही आती है अधूरा जो प्यार सावन का इक नज़र देख लूँ अगर तुमको । तब ही आये करार सावन का वो न आयेगा पास में मेरे क्यों करूँ इंतज़ार सावन का  दिल में जबसे बसे हो तुम दिलबर रोज़ होता दीदार सावन का आप आये हो मेरी महफ़िल में चढ़ रहा है खुमार सावन का  आस ये आखिरी मेरे दिल की करके आओ शृंगार सावन का आप क्यों अब चले नही आते  कुछ तो होगा उधार सावन का बिन सजन मान लो प्रखर तुम भी  खो ही जाता करार सावन का  महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :-
बीता मौसम हज़ार सावन का
आप बिन क्या शुमार सावन का
तुझको धानी चुनर में जब देखा
मैं हुआ हूँ शिकार सावन का
बात बनती नज़र नही आती
है अधूरा जो प्यार सावन का
इक नज़र देख लूँ अगर तुमको ।

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