ऐसा भी नही है कि सब कुछ ऐसा रहेगा,
आज जो जैसा है कल भी वो वैसा रहेगा।
तुम्हारी बात है तुम ही इल्म रखो इसका,
जिसको जो भी कहना है वो कहता रहेगा।
टूटी छत में ख़्वाब बुनती ये शब ए बारिश,
आरज़ू ए मोहब्बत को ये लम्हा अच्छा रहेगा।
ऐसा तो दस्तूर रहा है ज़माने का सदियों से,
दूर रास्ते का सफ़र मंजिल तक तन्हा रहेगा।
कल सहर में जो कुछ हाँसिल होगा तुम्हें,
तुम्हारी मंजिल का वही फ़लसफ़ा रहेगा।
कस भर के छुपा लिए हो तुम जिसे अभी,
अब देर तक कमरे में उसका धुआँ रहेगा।
Suraj Sharma
©love.shayar
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