हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं
पसीना माथे पे है
लहू एड़ियों से बहता
नंगा सिर हमारा
सूर्य का ताप सहता
गरीबी से नहीं डरते
हम तो अमीरी से दुखी है
हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं
रोटियाँ सुखी हुई खायी
पेट आधा सा भरा है
हम इमारत को बनाते
सामान मेरा रोड पे धरा है
कौन सुनता हैं ओठों की चुप्पी हैं
हमारी दास्ताँ किससे छुपी हैं
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