व्यतीत हो रहा है ।
शीघ्रता से
एक चुटकी में हर क्षण ।
प्रातः सूरज के निकलने
से अस्त होने तक ।
बना रहे हैं हम
हर क्षण उपयोग और
सार्थक विनियोग करने की योजनाएं।
भविष्य के अनदेखे अविदित कल्पों को साधने और सम्पूर्ण नियंत्रण पाने के लिए ।
ढो रहे हैं असफलतायें
पी रहे हैं घूंट अपेक्षाओं का ।
ढूंढ रहे हैं
भविष्य में न जाने क्या क्या?
खो रहे हैं संयम
नहीं ले पा रहे
आज का अभी का
इस क्षण का आनंद
क्योंकि क्षण भंगुर है।
प्रतिभा त्रिपाठी
व्यतीत हो रहा है