गुरू
शब्द-शब्द से निर्मित जग है
मानव है सृँगार यहाँ
गुरु अमृत है इस बगिया का
ज्ञान दीप अभिसार यहाँ ।।
जन्म क्षितिज पर हुआ अगर
प्रथम गुरु भगवान यहाँ
द्वितीय गुरु हैं मात-पिता
नित उनका कर सम्मान यहाँ ।।
तृतीय गुरू हैं ज्ञान चक्षु
जो नित-नित ज्ञान जगाते हैं
इस जग में रहना है कैसे
इसका पाठ पढ़ाते हैं ।।
चतुर्थ गुरू है यह भूमंडल
जीवन जीना सिखलाता है
हमको पत्थर से हीरा कर
विश्व में मान दिलाता है ।।
नमन है मेरा इस अवनि को
जिसने मुझको उपजाया है
नमन है मेरा सकल गुरू को
जिसने, हीरा मुझे बनाया है ।।
अशोक सिंह अलक
गुरू
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